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GST

Narendra Sharma
Advocate
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Health Care Services जीएसटी से करमुक्त

 
भारत देश में जब से बिक्री कर (लगभग वर्ष 1945) या व्यापार कर या मूल्य संवर्धित कर अधिनियम लगा, तो किसी भी कर प्रणाली में चिकित्सक द्वारा अपने चिकित्सालय से दी गई स्वनिर्मित अथवा अन्यथा दवा पर कोई कर आरोपण नहीं किया गया।
 
पूर्व में भी बिक्री कर/व्यापार कर/मूल्य संवर्धित कर अधिनियम के अन्तर्गत उस दवा पर या चिकित्सा की वस्तुओं पर कोई करदेयता नहीं थी, जो इलाज के दौरान चिकित्सक द्वारा अपने रोगियों को दी जाती थी। 24 वर्षों बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय त्रिसदस्यीय पीठ ने भारत संचार निगम लि0 बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया एवं अन्य 145 एसटीसी 91 में स्पष्ट किया कि 46वें संविधान संशोधन अधिनियम के फलस्वरूप चिकित्सा सेवाओं पर कोई करदायित्व निर्धारित नहीं किया गया है।
 
उक्त निर्णय के आधार पर टाटा मेन हॉस्पिटल प्रा0 लि0 बनाम स्टेट ऑफ झारखण्ड 2008, अस्वनी हॉस्पिटल बनाम सीटीओ, इण्टरनेशनल हॉस्पिटल प्रा0लि0 बनाम स्टेट ऑफ यू0पी0 2014 और फोर्टिस हेल्थकेयर लि0 बनाम स्टेट ऑफ पंजाब 2016 आदि निर्णयों में इस विधि को परिपक्व होने में तीन दशक से अधिक का समय लगा।
 
उल्लेखनीय है कि इस बीच कभी किसी प्रकरण में यदि कर आरोपित हुआ तो सक्षम न्यायालय ने उसे समाप्त कर दिया।
 
गुड्स एण्ड सर्विस टैक्स एक्ट, 2017 में चिकित्सालय/औषधालयों (Clinical Establishment) द्वारा दी जाने वाली दवा/चिकित्सा को Heading No. 9993 के अन्तर्गत रखते हुए विज्ञप्ति संख्या 12/2017 दिनांक 28 जून 2017 से करमुक्त कर दिया गया। इस करमुक्ति की अपेक्षा मात्र यह है कि Health Care Services किसी Clinical Establishment द्वारा प्रदान की गई हो इसका संचालन Authorised Medical Practitioner or para-medics द्वारा किया जा रहा हो तथा इसमें एम्बुलेंस सेवा भी सम्मिलित है।
 
जीएसटी के अन्तर्गत जारी विज्ञप्ति केवल यह उल्लेख करती है कि जीएसटी के भुगतान से छूट ऐसे Clinical Establishment जो Authorised Medical Practitioner या Para-medics द्वारा संचालित हैं और एम्बुलेन्स को भी होगी।
 

विज्ञप्ति की भाषा सरल और स्पष्ट है उसमें अन्य कोई निषेधात्मक प्रावधान नहीं है अतः उसकी ऐसी व्याख्या नहीं होनी चाहिए जो सीमा में आने वाले पात्रों को जीएसटी से प्राप्त छूट से वंचित करती हो।

यह संकुचित और ग्राह्य न होने वाली व्याख्या है क्योंकि महापालिका/नगर निगम के नियमों के अनुसार यदि कोई परिसर अस्पताल के रूप में पंजीकृत है तो उसके अंदर कोई भी दवा विक्रय का स्थल अस्पताल केन्द्र के रूप में ग्रहण होगा अन्यथा कोई व्याख्या संकुचित और अग्राह्य होगी।
 
अस्पताल की विविध व्याख्यायें विविध अधिनियमों में उपलब्ध हैं जिन्हें समग्र रूप से ग्रहण किये जाने पर कोई भिन्न या आपस में टकराव वाले अर्थ नहीं निकलते।
 
प्रथम दृष्टया इसमें कोई जटिलता या दुरूहता भी दर्शित नहीं होती और है भी नहीं क्योंकि विधायिका की मंशा अत्यन्त स्पष्ट रूप से अंकित है।
 
अधिनियम की धारा 16, अध्याय-5 ITC लेने की पात्रता और शर्तो का उल्लेख करती है जिसके अन्तर्गत यह भी अपेक्षा है कि इसे लेने का हकदार वह व्यक्ति होगा जो कारोबार के दौरान या उसे अग्रसर करने के लिये इसका उपयोग करे या किया जाना आवश्यक है, अन्यथा नहीं।
 
किन्तु इस प्रकरण में जहाँ जीएसटी अदा करके दवायें, उपकरण एवं अन्य अनुमन्य सहायक सामग्री खरीदी जाती हैं वहाँ आगे करमुक्त के विधान को देखते हुए यह स्पष्ट है कि अदा किये गये ITC को आगे उपयोग में लाना संभव नहीं है क्योंकि विधान में, जैसा ऊपर उल्लेख किया गया है चिकित्सीय सेवायें करमुक्त हैं।

इसका आशय यह है कि जिस Clinical Establishment को करमुक्ति लेनी है वह खरीद पर अदा किये गये और अनुमन्य समस्त ITC को RITC कर दें और फिर किसी मरीज या रोगी से कर वसूल न करें।

वास्तविकता में यह देखने में आ रहा है कि जो मरीज Clinical Establishment के अन्तर्गत अस्पताल में भर्ती होते हैं या उनके व्यय का भुगतान भारत सरकार/राज्य सरकार/बीमा एजेन्सी या कारपोरेट जगत द्वारा किया जाता है तो संभवतः उन्हें उक्त विज्ञप्ति के अन्तर्गत जीएसटी से करमुक्ति दी जा रही है, किन्तु अन्य मरीजों को यह करमुक्ति दिये जाने का साक्ष्य उपलब्ध नहीं हो रहा है अर्थात् संभवतः उनसे जीएसटी लेकर विभाग में जमा किया जाता है। जहाँ जीएसटी की छूट मरीजों को न दिये जाने का एक मात्र व संक्षिप्त एसिड टेस्ट यह है कि उनको दी जाने वाली छूट से संबंधित ITC को RITC किया जा रहा है या नहीं।

प्रथम दृष्टया यह कार्रवाई निर्दोष प्रतीत होती है कि यदि जीएसटी वसूल किया तो उसे राजकीय कोष में जमा कर दिया गया। किन्तु वास्तविकता में यह कार्य जीएसटी अधिनियम की धारा 171 जो मुनाफाखोरी निरोध उपाय का उल्लेख करती है, का उल्लंघन है। आशय यह है कि Clinical Establishment में आने वाले किसी भी रोगी या मरीज चाहे वह अस्पताल में भर्ती हो या न हो उससे जीएसटी वसूल नहीं किया जाना है। आशय यह है कि जब जीएसटी करमुक्ति प्रदान की गई तो उसका लाभ मरीज तक भी पहुँचाना चाहिये और यह लाभ न पहुँचाने वाले को मुनाफाखोरी के रूप में अधिनियम की धारा 171 में परिभाषित और उसका दण्ड भी निर्धारित किया गया है।